आखिर क्यों मनाया जाता है दशहरा, जाने इस बार के दशहरे की तिथि, पूजा विधि ऑयर मुहूर्त

दशहरा का पर्व असत्य पर सत्य की विजय का पर्व है। दशहरा को विजयादशमी भी कहा जाता है।यह शारदीय नवरात्रि के पूर्ण होने के दूसरे दिन मनाया जाता है। शारदी नवरात्रि पूरे 9 दिनों तक चलती है और इन 9 दिनों में भक्त माता की पूर्ण श्रद्धा भक्ति के साथ पूजा करते हो और व्रत करते हैं और नवमी की तिथि को यह व्रत समाप्त होता है और इसके दूसरे दिन दशमी को दशहरा का पर्व मनाया जाता है। यह हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है यह पूरे भारत में बहुत धूमधाम के साथ मनाया जाता है।

इस वर्ष दशहरा की शुभ तिथि व समय
हिंदू पंचांग के अनुसार दशहरा का पर्व इस वर्ष 15 अक्टूबर 2021 को मनाया जाएगा दशहरा का पर्व दिवाली से 20 दिन पहले मनाया जाता है।

•विजयादशमी का पर्व आश्विन मास शुक्ल पक्ष दशमी तिथि 14 अक्टूबर 2021 को शाम 6:00 बज कर शुरू होगा और अश्विन मास शुक्ल पक्ष तिथि 15 अक्टूबर 2021 को शाम को 6:02 पर समाप्त होगा।

•विजयदशमी का पूजा का शुभ मुहूर्त 15 अक्टूबर को दोपहर 2:02 से 2:48 तक रहेगा।

दशहरा पर्व के पीछे पौराणिक कथा क्या है??
दशहरा मनाने के पीछे दो कथाएं प्रचलित हैं
पहली कथा
हमारे पुराण के अनुसार इस त्यौहार का नाम दशहरा इसलिए पड़ा है क्योंकि इस दिन भगवान श्री राम ने लंका पर विजय कर रावण का वध किया था और अपनी पत्नी सीता को रावण के चंगुल से आजाद किया था। और असत्य पर सत्य की जीत हुई थी इसलिए इस दिन हर वर्ष 10 सिर वाले रावण के पुतले को जलाया जाता है ताकि हम अपने अंदर के क्रोध, लालच, ईष्या,स्वार्थ, अन्याय, अहंकार को नष्ट करें।

दूसरी कथा
दूसरी कथा के अनुसार विजयादशमी यानी दशहरा के दिन देवी अपराजिता का पर्वत भी माना जाता है ऐसा माना जाता है कि इस दिन मां दुर्गा ने राक्षस महिषासुर को मारकर देवताओं की रक्षा की थी। इस दिन शनि पूजा अपराजिता पूजा और सीमा हिमस्खलन कुछ ऐसे अनुष्ठान है जो शाम के समय किए जाते है।

दशहरा पूजा का महत्व
दशहरे के दिन मां दुर्गा और श्री रामचंद्र की पूजा की जाती है मां दुर्गा शक्ति का प्रतीक है और भगवान श्री राम मर्यादा धर्म और आदर्श व्यक्तित्व के प्रतीक है।

साल में कुल 3 मुहूर्त सबसे शुभ माना जाता है चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अश्विन शुक्ल दशमी, वैशाख शुक्ल तृतीया यह तीनों ही दिन किसी भी काम की शुरुआत करने के लिए सबसे शुभ माने जाते हैं। इसलिए कई लोग अपने नए काम की शुरुआत दशहरे के दिन से करते हैं। क्षत्रिय समाज इस दिन अपने शस्त्रों की पूजा करता है जिससे आयुधा पूजा कहते हैं। ब्राह्मण समाज इस दिन देवी सरस्वती की पूजा करते हैं। नवरात्रि के शुरू हुई रामलीला का समापन इस दिन रावण और उनके भाइयों के पुतले जलाकर किया जाता है इस तरह से इन दिन भगवान राम की जीत का जश्न मनाया जाता है।

दशहरा की पूजा विधि
●दशहरे में अपराजिता पूजा तथा शस्त्र पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन दोनों ही प्रकार के पूजा किया जाता है
■दशहरे के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर ले।
■गेहूं या चूने से दशहरा की प्रतिमा बनाए गाय के गोबर से 9 गोले बना लें इसमें कंडे भी कहा जाता है।
■कंडो पर जौ और दही लगाएं इस दिन कई जगहों पर भगवान राम की झांकियां पर जो चढ़ाई जाती है तो कई जगह लड़के के कान पर जो रखने का रिवाज होता है।
■गोबर से दो कटोरिया बनाए एक कटोरी से कुछ सिक्के रखें दूसरे और दूसरी कटोरी में रोली ,चावल ,जौ व फल रखे प्रतिमा को जौ गुड और मूली अर्पित की जाती है।
■यदि बही खाते हो या शास्त्रों की पूजा कर रहे हैं तो वहां भी यह सामग्री अर्पित करें।
■अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा दे गरीबों को भोजन कराएं।
■फिर रावण दहन के बाद शमी वृक्ष की पत्ती जिसे सोन पत्ती के नाम से जाना जाता है उन्हें अपने परिजनों को दें वह बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद प्राप्त करें।

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