हमारे भारतवर्ष में अनेकों मंदिर है और सभी मंदिर किसी ना किसी चमत्कार की वजह से प्रसिद्ध है। हमें आज के दौर में भी बहुत से चमत्कार देखने को मिलते हैं यह हमें भगवान के उपस्थित होने का संकेत देते हैं। इन चमत्कारों को देखकर सारे लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं और सभी के मन में भगवान के प्रति श्रद्धा और बढ़ जाती है ऐसे ही एक मंदिर मैहर माता का है, यह एक प्राचीन मंदिर है और यहां कुछ ऐसे चमत्कार होते हैं जिस पर भरोसा कर पाना आसान नहीं है तो आज हम आपको इस मंदिर के चमत्कार के बारे में ही बताएंगे।
जाने कहां है यह चमत्कारी मंदिर
मध्यप्रदेश के सतना जिले में मैहर तहसील के पास चित्रकूट पर्वत पर स्थित माता के इस मंदिर को मैहर देवी का शक्तिपीठ कहा जाता है, मैहर का मतलब है मां का हाथ माना जाता है कि यहां मां सती का हाथ गिरा था, इसलिए इसकी गणना शक्तिपीठों में की जाती है। जहां पर माता पहाड़ के ऊपर विराजमान है जहां पर माता के दर्शन के लिए करीब 1063 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है पूरे भारत में सतना का मैहर मंदिर माता शारदा का अकेला मंदिर है।
जाने क्या होता है चमत्कार
यह मंदिर 1 शक्तिपीठ है यहां हर रोज एक चमत्कारी घटना होती है जब रात के समय मंदिर के कपाट पुजारी के द्वारा बंद किया जाता है और पुजारी पहाड़ के नीचे चले जाते हैं, तब रात के समय मंदिर में कोई भी उपस्थित नहीं रहता है लेकिन अगले दिन सुबह जब पुजारी पुनः मंदिर के कपाट खोलते हैं तो पहले से ही देवी मां के सामने ताजे फूल चढ़े हुए मिलते हैं।
ऐसा माना जाता है कि यह फूल वीर योद्धा आल्हा रुदल चढ़ाकर जाते हैं वह अदृश्य होकर रोज माता की पूजा करने के लिए मंदिर में आते हैं इन दोनों योद्धाओं ने इस घने जंगल में पहाड़ों के ऊपर स्थित मां शारदा मंदिर की पावन धाम की खोज की थी। और 12 वर्षों तक यहां पर कड़ी तपस्या की थी तब मां शारदा ने उनसे खुश होकर उनको अमर रहने का वरदान दिया था।
कौन है आल्हा उदल
आल्हा और उदल दो भाई थे। वे बुंदेलखंड के महोबा के वीर योद्धा और परमार के सामंत थे, कालिंजर के राजा परमार के दरबार में जाग निक नाम के एक कवि ने आल्हाखंड नामक एक काव्य रचयिता था। उसने इन वीरों की गाथा की वर्णित है इन ग्रंथ में दो वीरों की 52 लड़ाई जो की रोमांचकारी वर्णन है आखिर लड़ाई उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ लड़ी थी।
मां की पूजा और आरती जो इस पर विश्वास नहीं करता खुद अपने आंखों से वहां पर जाकर सबूत देख सकता है। जब भी सुबह माता के मंदिर का कपाट पहली बार खुलता है तो वहां पहले से ही सफाई हो गई होती है और माता को ताजे फूल चढ़े हुए रहते हैं इस बात का सबूत रोज वहां पर देखा जा सकता है आज भी यह मान्यता है कि मां शारदा के दर्शन हर दिन सबसे पहले आल्हा और उदल ही करते हैं।
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