भारतीय महिलाओं के लिए करवा चौथ का व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्यौहार है। पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में विशेष तौर पर मनाया जाता है। इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और रात को चंद्रमा की पूजा अर्चना करने के बाद व्रत तोड़ती है। करवा चौथ आने के कुछ दिन पहले ही महिलाएं इसकी तैयारियों में जुट जाती है। करवा चौथ के दिन महिलाएं अपना पूरा श्रृंगार करके इस व्रत में पूजा पाठ करती हैं और अपने पति की लंबी उम्र की मनोकामना करती है जिसके लिए वह निर्जला व्रत रखती है।
जाने कौन है करवा माता
करवा चौथ के दिन किसकी पूजा करते हैं? उन्हें करवा माता कहा जाता कहा जाता है? पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री रहती थी। उसका पति बहुत उम्रदराज था। 1 दिन वह नदी में स्नान करने गया तो नहाते वक्त मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया और उसे निकलने के लिए खींचने लगा। उसने चिल्लाकर अपनी पत्नी कारवां को बुलाया और सहायता के लिए कहने लगा।
करवा पतिव्रता स्त्री थी और उसके सतीत्व में काफी बल थी। करवा नदी के तट पर अपने पति के पास पहुंचकर सूती साड़ी से धागा निकालकर उस मगरमच्छ को अपने तपोबल से माध्यम से बांध दिया। सूत के धागे से बांध कर करवा मगरमच्छ को लेकर यमराज के पास पहुंच गई यमराज ने करवा से पूछा कि आप यहां क्या कर रहे हैं। आप क्या चाहती हैं? तब करवा ने यमराज जी से कहा कि मेरे पति के पैर को पकड़ लिया था। इसलिए आप अपनी शक्ति से इसके मृत्युदंड दे और इस को नरक में ले जाए।
यमराज ने करवा से कहा कि अभी इस मगर की आयु शेष है इसलिए वह समय से पहले मगर की मृत्यु नहीं दे सकते इसमें करवा ने कहा कि अगर आप मगर को मारकर मेंरे पति को चिरायु का वरदान नहीं देंगे तो मैं अपने तपोबल के माध्यम से आप को ही नष्ट कर दूंगी।
करवा की बात सुनकर यमराज के पास खड़े चित्रगुप्त सोच में पड़ गए क्योंकि करवा के सतीत्व के कारण ना तो वो उस को श्राप दे सकते थे। और न उसके वजन को अनदेखा कर सकते थे तब उन्होंने मगर को यम लोक भेज दिया और उसके पति को चिरायु होने का आशीर्वाद दिया। साथ ही चित्रगुप्त ने करवा को आशीर्वाद दिया कि तुम्हारे जीवन में सुख समृद्धि से भरपूर होगा और चित्रगुप्त जी ने वरदान दिया कि आज की तिथि के दिन जो भी महिला पूर्ण विश्वास के साथ तुम्हारा व्रत और पूजन करेगी उसके सौभाग्य की रक्षा में करूंगा।
उस दिन कार्तिक मास की चतुर्थी होने के कारण करवा और चौथ मिलने से इसका नाम करवा चौथ पड़ा इस तरह मां करवा पहली महिलाएं जिन्होंने सुहाग के रक्षा के लिए व्रत किया।
शास्त्रों में है वर्णन
रामचरितमानस के अंदर लंका कांड के अनुसार इस व्रत को एक पक्ष और भी है कि जो पति पत्नी किसी कारणवश एक दूसरे से बिछड़ गए हैं चंद्रमा की किरणें उन्हें अधिक कष्ट पहुंचती है इसलिए करवा चौथ के दिन चंद्र देव की पूजा कर महिलाएं यह कामना करती है कि किसी भी कारण से उन्हें अपने पति से बिछड़ना ना पड़े। महाभारत में भी एक प्रसंग है जिसके अनुसार पांडवों पर आए संकट को दूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण के सुझाव पर द्रोपति ने करवा चौथ का व्रत किया था इसके बाद पांडव युद्ध में विजई रहे।
छलनी से चांद क्यों देखा जाता है
इस व्रत की एक मुख्य बात यह है कि इसमें महिलाएं छलनी से चांद को देखती है और फिर अपने पति को इसी छलनी से देखती है इसके पीछे मान्यता यह है कि वीरवती नाम की एक पतिव्रता स्त्री ने यह व्रत किया भूख से व्याकुल वीरवती की हालत उसके भाइयों से सहन नहीं हूई उन्होंने चंद्र उदय से पूर्व ही एक पेड़ की ओट में चलनी लगा कर उसके पीछे अग्नि जला दी और प्यारी बहन से आकर कहा देखो चांद निकल आया है, अर्घ दे दो बहन ने झूठा चांद देखकर व्रत खोल लिया जिसके कारण उसके पति की मृत्यु हो गई। साहसी वीरवती ने अपने प्रेम और विश्वास से मृत पति को सुरक्षित रखा अगले वर्ष करवा चौथ के ही दिन नियम पूर्वक व्रत का पालन किया जिससे चौथ माता ने प्रसन्न होकर उसके पति को जीवनदान दे दिया तब से छलनी में चांद को देखने की परंपरा चालू हुई।
चंद्र को अर्घ देना होता है बहुत महत्वपूर्ण
ऐसा माना जाता है कि करवा चौथ पर चलने से चांद को अर्घ देना बहुत ही शुभ होता है। पुराणों के अनुसार चंद्रमा की दीर्घायु हो देने वाला कारक माना जाता है। साथ ही चाद सुंदरता, प्रेम का भी प्रतिबिंब है। इसी वजह से करवा चौथ के दिन सुहागने छलनी से पहले चांद को और फिर अपने पति का चेहरा देखती है। और उनकी लंबी उम्र की कामना करती है छलनी का प्रयोग आटा या अन्य तरह की चीजों को छानने के लिए भी किया जाता है। छलनी में छानने के बाद किसी भी वस्तु की अशुद्धि अलग हो जाती है इसी वजह से करवा चौथ के मौके पर चलनी से ही चांद देखा जाता है। छलनी से चांद को देखकर पति की दीर्घायु और सौभाग्य में बढ़ोतरी की प्रार्थना की जाती है।
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