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Success Story

प्रेरणादायक: जानिए कैसे लकड़ी की दुकान पर काम करने वाला चपरासी बना Fevicol कंपनी का मालिक

कोई भी व्यक्ति ऊंचे मुकाम तक तभी पहुंचता है जब वह कड़ी मेहनत करे और उसकी इच्छा शक्ति मजबूत हो. आज हम आपको बताने वाले हैं कि कैसे लकड़ी की दुकान पर काम करने वाले एक चपरासी ने फेविकोल कंपनी खोली और करोड़ों का मालिक बन गया.

बलवंत पारेख फेविकोल कंपनी के संस्थापक है और आज उनकी गिनती भारत के बड़े उद्योगपतियों में होती है. बलवंत पारेख का जन्म गुजरात के छोटे से गांव महुआ में एक मिडिल क्लास परिवार में हुआ था. बचपन से ही वह बड़ा व्यापारी बनने का सपना देखते थे. लेकिन उनके परिवार वाले उन्हें वकील बनाना चाहते थे.

वकालत की पढ़ाई के लिए बलवंत मुंबई पहुंचे जहां उन्होंने सरकारी लॉ कॉलेज में दाखिला लिया. अपने घर वालों का सपना पूरा करने के लिए उन्होंने वकालत की पढ़ाई तो कर ली. लेकिन उनका मन इसमें नहीं था. उसी दौरान देश में आजादी की आग भड़की हुई थी. गांधी जी के विचारों से युवा प्रभावित थे. बलवंत उन्हीं युवाओं के ग्रुप में शामिल हो गए और भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा भी बने.

भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लेने की वजह से 1 साल तक वह पढ़ाई नहीं कर पाए थे. लेकिन बाद में उन्होंने पढ़ाई पूरी की और डिग्री हासिल की. बलवंत ने प्रिंटिंग प्रेस में नौकरी कर ली. बाद में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और लकड़ी के व्यापारी के यहां चपरासी का काम करने लगे. इसी दौरान उन्हें जर्मनी जाने का मौका मिला, जहां उन्होंने खुद का व्यापार शुरू करने की योजना बनाई.

उस समय तक देश आजाद हो चुका था. बलवंत पारेख ने 1959 में पिडिलाइट ब्रांड की स्थापना की. उस समय लकड़ियों को चिपकाने के लिए कारपेंटर चर्बी का इस्तेमाल करते थे. यह काम बहुत ही मुश्किल होता था. इसी से उन्हें आइडिया आया कि क्यों ना कुछ ऐसा बनाया जाए जिससे लकड़ी आसानी से चिपक सके. काफी मेहनत के बाद वह Fevicol बनाने में सफल हुए. आज Fevicol भारत के 1 बड़े ब्रांड के रूप में जाना जाता है.

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