जाने पूजा के लिए सिर्फ तांबे का बर्तन क्यों उपयोग करते है, चांदी का क्यों नहीं

तांबे का बर्तन आमतौर पर सभी घरों में पूजा में उपयोग होता है आपने अपने घर की पूजा घर में या फिर पूजा करते समय तांबे के लोटे या तांबे के बर्तन को जरूर देखा होगा, लेकिन कभी आपने सोचा कि आखिर क्यों धातु के बने इस कलश का इस्तेमाल किया जाता है आखिर इसके पीछे क्या कारण है। हिंदू धर्म के अनुसार तांबे के बर्तन को बहुत ही शुद्ध, पवित्र माना जाता है तांबे के बने बर्तन पूरी तरह से शुद्ध होते हैं ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इसको बनाने के लिए किसी भी अन्य धातु का इस्तेमाल नहीं किया जाता, विभिन्न प्रकार के धातु सोना, चांदी, पीतल, तांबे के बर्तन का उपयोग शुभ माना जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार सोने को सर्वश्रेष्ठ धातु माना जाता है अन्य धातु के संबंध में धर्म ग्रंथों में कई प्रकार की बातें लिखी हुई है इसी प्रकार तांबे के बर्तन के उपयोग के लिए भी कुछ बातें लिखी गई है जो आज हम आपको इस आर्टिकल में बताएंगे।

तांबे से जुड़ी पौराणिक मान्यता
वराह पुराण में उल्लेख है कि प्राचीन समय में गुडाकेश नाम का एक राक्षस हुआ करता था राक्षस होने के बाद भी वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। भगवान को प्रसन्न करने के लिए वह घोर तपस्या भी करता रहता था, एक बार राक्षस की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने प्रकट होकर उसे वरदान मांगने को कहा। तब राक्षस ने वरदान में मांगा कि हे प्रभु मेरी मृत्यु आपके सुदर्शन चक्र से ही हो मृत्यु के बाद मेरा पूरा शरीर तांबे का हो जाए और वह तांबा अत्यंत पवित्र धातु बन जाए। फिर उसी तांबे के कुछ पात्र बन जाए जिनका उपयोग आप की पूजा में हमेशा होता रहे एवं जो भी इन पात्रों का उपयोग आप की पूजा में करें उनके ऊपर आप की कृपा बनी रहे, राक्षस के द्वारा मांगे गए वरदान से भगवान विष्णु बहुत ज्यादा प्रसन्न हुए और सुदर्शन चक्र से राक्षस के शरीर के कई टुकड़े कर दिया जिसके बाद गुड़ाकेश के शरिश से तांबा, रक्त से सोना, हड्डियों से चांदी और पवित्र धातु का निर्माण हो गया,यही वजह है कि भगवान की पूजा में हमेशा तांबे के बर्तनों का ही उपयोग किया जाता है।

पूजा में तांबे के बर्तन के उपयोग के फायदे
शास्त्रों में बताया गया है कि तांबे के बर्तन में रखकर जो भी वस्तु हम भगवान को अर्पण करते हैं उससे भगवान को बड़ी प्रसन्नता होती इस धातु के पात्रों से सूर्य को जल अर्पित करने की भी मान्यता है। ऐसा माना जाता है कि तांबे के बने बर्तनों में हर प्रकार के बैक्टीरिया को खत्म करने की शक्ति होती है इसी वजह से पूजा के बाद तांबे के पात्र में रखे जल को घर में छिड़कने के लिए कहा जाता है। तांबा सोना और चांदी की तुलना में हमें सस्ता पड़ता है इसके साथ ही मंगल की धातु तांबा ही है। ऐसा माना जाता है कि तांबे में रखे जल को पीने से कई तरह के रोग दूर होते हैं और शरीर में रक्त का प्रवाह भी बढ़ता है। शास्त्रों के अनुसार इसलिए पूजा-पाठ के बर्तन शुद्ध ही रहते हैं क्युकी इसमें जंग नहीं लगता मतलब कि इस की ऊपरी सतह पानी और हवा के साथ रसायनिक क्रिया करती है लेकिन तांबे के अंदर प्रवेश नहीं होती।

आखिर क्यों चांदी के बर्तन का उपयोग पूजा में नहीं किया जाता
चांदी के पात्र का उपयोग हम अभिषेक पूजन में करते हैं लेकिन तांबे के पात्र से दुग्ध अभिषेक वर्जित माना जाता है। कुछ विद्वानों के अनुसार चांदी एक ऐसी वस्तु है जो चंद्र देव का प्रतिनिधित्व करती है भगवान चंद्र देव शीतलता के कारक है, चांदी खरीदारी से समाज के प्रत्येक मनुष्य को भगवान चंद्र का आशीर्वाद प्राप्त होता है लेकिन फिर भी इसे पूजा के कार्य में उपयोग में लाना अशुभ माना जाता है इसके पीछे शास्त्रों में लिखा हुआ है कि-
शिवनेत्रोद्ववं यस्मात् तस्मात् पितृवल्लभम्।
अमंगलं तद् यत्नेन देवकार्येषु वर्जयेत्।।
(मत्स्यपुराण 17|23)
अर्थ – चांदी पितरों को तो परमप्रिय है, पर देवकार्य में इसे अशुभ माना गया है। इसलिए देवकार्य में चांदी को दूर रखना चाहिए।

शनिदेव की पूजा में करे लोहे के पात्र का इस्तेमाल
ऐसा माना जाता है कि यदि शनि देव की पूजा आप लोहे से बने धातु के बर्तनों से करते हैं तो जब आपको बहुत ही शुभ परिणाम देता है शनिदेव की पूजा कभी भी तांबे के बर्तनों का उपयोग ना करें क्योंकि तांबा सूर्य की धातु है और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि और सूर्य एक दूसरे के शत्रु है।

इन धातुओं के पात्र का भी इस्तेमाल आप पूजा में कर सकते हैं
पूजा तथा अन्य धार्मिक कार्यों में लोहा, स्टील, और एलुमिनियम को अपवित्र धातु माना जाता है इनकी पूजा का हमें फल प्राप्त नहीं होता है इन धातुओं से मूर्ति भी नहीं बनाई जाती है लोहा में हवा पानी के कारण जंग लग जाते हैं एलुमिनियम धातु से कालिख निकलती है पूजन में कई व मूर्तियों को हाथ से स्नान कराया जाता है इसलिए सावधानी आवश्यक है।

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