हमारे समाज में दिव्यांग लोगों को बेकार समझा जाता है. ऐसा माना जाता है कि दिव्यांग होने पर कोई व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता. इस वजह से लोग उन्हें ताने भी देते हैं. लेकिन आंध्र प्रदेश के सीतापुर के श्रीकांत बोला ने ऐसे लोगों को करारा जवाब दिया है. श्रीकांत बचपन से ही दृष्टिहीन है. उनके परिवार की आर्थिक स्थिति भी बेहद खराब थी. श्रीकांत का बचपन का मुश्किलों में बीता.
उनके परिवार वालों को रिश्तेदार ताना देते थे और कहते थे कि यह बच्चा बड़ा होकर आपके ऊपर बोझ बन जाएगा. ऐसे में बच्चे को मार ही देना चाहिए. लेकिन श्रीकांत के माता-पिता ने अपने बच्चे को प्यार से पाल पोस कर बड़ा किया. उन्हें गांव के स्कूल में एडमिशन दिलवाया. श्रीकांत ने स्कूल में भी बाकी विद्यार्थियों की तुलना में ज्यादा अच्छा प्रदर्शन किया.
श्रीकांत को स्कूल में लास्ट वाली बेंच पर बैठाया जाता था. साथी बच्चे उनका खूब मजाक उड़ाते थे. दसवीं में श्रीकांत ने 90% अंक हासिल कर सबको हैरान कर दिया था. हालांकि जब श्रीकांत 12वीं में साइंस में एडमिशन लेने स्कूल पहुंचे तो उन्हें एडमिशन देने से मना कर दिया गया. इस वजह से श्रीकांत ने स्कूल प्रशासन पर केस कर दिया था.
आखिरकार 6 महीने बाद स्कूल प्रशासन ने श्रीकांत को अपने स्कूल में एडमिशन दिया. श्रीकांत ने 12वीं कक्षा में 98% अंक हासिल किए. इसकी वजह से उन्हें अमेरिका के एमआईटी में एडमिशन मिल गया. पढ़ाई करने के बाद श्रीकांत को अमेरिका की कई कंपनियों से नौकरी के प्रस्ताव मिले. लेकिन उन्होंने सभी प्रस्ताव ठुकरा दिए, क्योंकि वह अपने देश के लिए कुछ करना चाहते थे.
2012 में उन्होंने बौलैंट इंडस्ट्री नामक कंजूमर फूड पैकेजिंग कंपनी खोली. यह कंपनी पत्तियों से और इस्तेमाल किए गए कागज से इको फ्रेंडली पैकेजिंग बकेजिंग बनाती है. श्रीकांत की कंपनी का टर्नओवर 200 करोड़ रुपए सालाना हो गया है. 2017 में इस कंपनी की वैल्यू 413 करोड़ रुपए थी. इस कंपनी में लगभग 15000 वर्कर काम करते हैं.
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