ये कहानी है मालेश बाडरप्पा की, जो मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से बैचलर ऑफ सोशल वर्क की पढ़ाई कर रहे हैं. यह कॉलेज चेन्नई का जाना माना कॉलेज है. मालेश के जन्म के 2 हफ्ते बाद ही उनकी मां की मृत्यु हो गई थी. लेकिन 5 महीनों बाद उनके पिता भी दुनिया छोड़कर चले गए. मालेश के भाई-बहन माता-पिता की मौत के लिए उसे ही जिम्मेदार मानते हैं.
मालेश ने 6 साल की उम्र में ही खेतों में मजदूरी करना शुरू कर दिया था. वह मवेशियों को चराने जाते थे. तमिलनाडु के कृष्णागिरी के एक फार्म में फूल तोड़ने का काम करते थे. उन्हें भरपेट भोजन भी नसीब नहीं होता था. मालेश ने बताया कि मैं टीनएजर था और दूसरी कक्षा में पढ़ता था और अपने बड़े भाई के साथ रहता था. वह मुझे अपने साथ फार्म ले जाते और मुझे काम करने को कहते.
मुझे सुबह उठकर पहले गायों को चराने जाना होता था और फिर मैं उनका दूध निकालता. इसके बाद टमाटर के खेतों में काम करता और गुलाब के फूलों और सीजन की सब्जी को पानी देता. मैं मालिक के घर के पास ही एक छोटी सी जगह में रहता था. मेरा भाई बस 5 मिनट के लिए मुझसे मिलने आता. वह मेरे हिस्से की मजदूरी भी मालिक से ले जाता. मुझे कभी भी पढ़ाई के लिए पैसे नहीं दिए.
मालेश ने बताया कि 10-12 साल की उम्र में मेरे भाई मुझे एक फॉर्म में काम करने ले गए. वहां का मालिक मुझसे बहुत बुरा बर्ताव करता था. काम करते-करते कई बार मेरे हाथों से खून तक निकल आता था. लेकिन 2013 में आईएएस परवीन पी नायर ने उनकी मदद की और उन्हें फार्म हाउस से रेस्क्यू किया. मालेश ने बताया कि फार्म पर रेड पड़ी. उस समय मालिक तो वहां नहीं था,, लेकिन बच्चे खेतों में मजदूरी कर रहे थे.
मालिक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गई. मालेश के साथ कई और बच्चों को भी बचाया गया था, जिनकी पढ़ाई की व्यवस्था सरकारी स्कूलों में की गई और उन्हें रहने के लिए हॉस्टल भी दिए गए. आठवीं कक्षा के बाद मालेश को कृष्णागिरी के रायाकोटाई के एक स्कूल में शिफ्ट कर दिया गया, जहां उनकी टीचर ने बहुत मदद की और उनका हौसला बढ़ाया. अब वह इंग्लिश मीडियम से पढ़ रहे हैं. वह पढ़-लिखकर आईएएस बनना चाहते हैं.
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