बेकार समझकर फेंके जाने वाले भूसी को इस शख्स ने बनाया काला सोना, सिर्फ एक साल में कमाया 20 लाख रुपए

ओडिसा के उस कालाहांडी के रहने वाले बिभू साहू की कहानी बिल्कुल अलग है. उसी कालाहांडी में बिभू साहू शिक्षक थे, लेकिन उन्होंने 2007 में नौकरी छोड़ दी और धान का व्यवसाय शुरू कर दिया. लेकिन उनकी जिंदगी में बदलाव तो तब आया जब उन्होंने इनोवेशन किया और इससे वह 20 लाख रुपए सालाना की कमाई करने लगे. बिभू साहू ने कैसे चावल की भूसी को काले सोने में बदल दिया, आइए जानते हैं.

कालाहांडी ओडिशा में हर साल लगभग 50 लाख क्विंटल धान की खेती होती है. यहां दर्जनों पैरा ब्लोइंग कंपनियां चावल का ट्रीटमेंट करती हैं, जिससे भूसी का उत्पादन बड़ी मात्रा में होता है. उनकी मिल में ही हर दिन लगभग 3 टन भूसी का उत्पादन होता है. आमतौर पर भूसी को फेंक दिया जाता है या जला दिया जाता है, जिससे प्रदूषण फैलता है.

इसी वजह से बिभू ने भूसी को इकट्ठा करना शुरू कर दिया. हालांकि कुछ ही समय में गोदाम भी भर गया. अब उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था तो उन्होंने रिसर्च किया. उन्हें बाद में पता चला कि चावल की भूसी का इस्तेमाल स्टील उद्योग में एक थर्मल इंसुलेटर के रूप में हो सकता है क्योंकि इसमें 85% सिलिका होती है. यह स्टील सेक्टर में इस्तेमाल के लिए बहुत अच्छा होता है. इस तरह जब बॉयलर में जली भूसी का इस्तेमाल किया जाता है तो उसके तापमान की वजह से इससे बहुत ज्यादा प्रदूषण नहीं होता.

हालांकि अभी भी बिभूके सामने इसके क्रियान्वयन की समस्या थी. उन्होंने किसी तरह पैसा जुटाया और मिस्त्र की एक स्टील कंपनी का दौरा किया. उन्होंने सैंपल के साथ कंपनी को अपना प्रस्ताव दिया. कंपनी ने इस प्रस्ताव में रुचि दिखाई और पूछा कि क्या उन्हें यह पाउडर के रूप में उपलब्ध कराया जा सकता है. तो बिभू ने कहा कि यह कठिन नहीं होगा, क्योंकि यह हवा में उड़ सकती है. काफी विचार-विमर्श के बाद भूसी को एक गोली के रूप में बदल निर्यात करने का निर्णय किया गया.

शुरुआत में उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. उन्हें नहीं पता था कि इसकी गोली कैसे बनाई जाती है. इसके लिए उन्होंने कुछ विशेषज्ञों को बुलाया. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. तब उन्होंने पैलेट बनाने की प्रक्रिया को समझने के लिए एक पोल्ट्री फार्म से संपर्क किया. यहां से भी उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ. काफी रिसर्च के बाद वह कुछ समय के लिए अपने गांव चले गए और चार लोगों के साथ आए.

उन्होंने उन लोगों की मदद से कुछ प्रयोग किए और सफलता हासिल की. शुरुआत में पेलेट को सही आकार में बनाने के लिए कुछ हफ्ते का समय लगा. बिभू ने बताया कि शुरुआत में हमारे पेलेट 1 मिमी से 10 मिमी के आकार में थे. इस खेप को खपाने के लिए मैंने फ्रांस, जर्मनी, इटली, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, ताइवान और यूनाइटेड किंगडम की कई कंपनियों को ईमेल लिखे. आखिरकार हमारी पहली खेप 2019 में सऊदी अरब गई. उन्हें उत्पाद बहुत पसंद आया था और इसकी गुणवत्ता अच्छी थी. 2019 में बिभू ने 100 टन पेलेट बेचकर 20 लाख रुपए कमाए.

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