आज हम आपको पश्चिम बंगाल की रहने वाली श्वेता अग्रवाल के संघर्ष की कहानी बता रहे हैं जिन्होंने 18 साल की उम्र में ही यह समझ लिया था कि वह शिक्षा के दम पर ही आर्थिक और सामाजिक हालत में बदलाव ला सकती हैं. श्वेता ने काफी मेहनत की और उन्होंने लगातार तीन बार यूपीएससी परीक्षा पास की. 2015 में वह आईएएस अधिकारी बन गई. 2015 में यूपीएससी परीक्षा में उन्होंने 19वीं रैंक हासिल की थी.
श्वेता मारवाड़ी परिवार से ताल्लुक रखती हैं. उनके परिवार में कुल 28 लोग थे. उनके पिता एक किराने की दुकान में काम करते थे. श्वेता जब पैदा हुई थी तो उनके दादा-दादी खुश नहीं थे, क्योंकि वह पोता चाहते थे. लेकिन श्वेता के माता-पिता अपनी बेटी से बहुत प्यार करते थे. श्वेता की स्कूली शिक्षा बहुत मुश्किल से पूरी हुई. उनके माता-पिता ने उनका दाखिला कोलकाता के सेंट जोसेफ स्कूल में कराया. लेकिन यहां फीस बहुत ज्यादा थी.
कड़े संघर्षों के बाद श्वेता की स्कूली पढ़ाई पूरी हुई. लेकिन जब स्कूल खत्म होने के बाद कॉलेज में एडमिशन की बारी आई तो उनके चाचा उनके पिता से कहने लगे कि बेटी को इतना मत पढ़ा-लिखाओ. आखिर में उसे चौका बर्तन ही करना है. हालांकि श्वेता के पिता ने उनका एडमिशन कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज में करवाया. श्वेता ने कॉलेज में टॉप किया और उन्हें Delloite में अच्छे पद पर नौकरी मिल गई.
हालांकि श्वेता को जब पता चला कि यूपीएससी की परीक्षा में हर साल 5 लाख से ज्यादा बच्चे शामिल होते हैं. लेकिन केवल 90 ही आईएएस बन पाते हैं, तब श्वेता इस पद को पाने के लिए कड़ी मेहनत करने में जुट गईं. उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने कोचिंग क्लास ज्वाइन की. लेकिन कुछ समय बाद वह सेल्फ स्टडी करने लगी.
2011 में श्वेता पास नहीं हुई. 2013 में उन्हें 497वीं रैंक मिी और उनका चयन आईआरएस अधिकारी के पद पर हुआ. लेकिन वह संतुष्ट नहीं थी. 2014 में श्वेता ने यूपीएससी परीक्षा में 141 वीं रैंक हासिल की और उन्हें आईपीएस के लिए चुना गया. हालांकि 2015 में श्वेता ने 19वीं रैंक हासिल की और वह आखिरकार आईएएस अधिकारी बन गई.
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