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क्रिकेट जगत में ज्यादातर खिलाड़ी ऐसे हैं जो संघर्षों का सामना करने के बाद राष्ट्रीय टीम में जगह बनाने में कामयाब हुए हैं. भारतीय क्रिकेट टीम के लिए खेलने का सपना तो ना जाने कितने युवा देखते होंगे. लेकिन हर कोई इसे साकार नहीं कर पाता. सपने उन्हीं के सच होते हैं जो उन्हें पूरा करने के लिए अपना सब कुछ त्याग देते हैं.
ऐसी ही कहानी है पृथ्वी शॉ की. पृथ्वी शॉ जब 4 साल के थे तो उनकी मां की मृत्यु हो गई थी. अपने बेटे के लिए पिता ने दुकान तक बेच डाली. पृथ्वी शॉ को बचपन से ही क्रिकेट खेलने का शौक था. महज 3 साल की उम्र में उन्होंने बल्ला पकड़ लिया था. बेटे की क्रिकेट में दिलचस्पी देखकर पिता पंकज शॉ ने फैसला कर लिया था कि वह अपने बेटे को क्रिकेटर ही बनाएंगे.
हालांकि जब पृथ्वी शॉ की मां का निधन हो गया तो उनके पिता पंकज को भी झटका लगा था. मां की मौत के बाद पृथ्वी शॉ की परवरिश उनके पिता ने अकेले ही की. पंकज शॉ ने पृथ्वी का दाखिला विरार के क्रिकेट एकेडमी में करवा दिया. पृथ्वी शॉ अपने पिता के साथ सुबह 4:30 बजे विरार से बांद्रा के एमआइजी ग्राउंड जाते थे और शाम को वापस लौटते थे.
पृथ्वी शॉ के पिता की कपड़ों की दुकान थी. लेकिन बेटे के सपने पूरे करने के लिए उन्होंने यह दुकान भी बेच दी. पृथ्वी शॉ के लिए उनके पिता गेंदबाज भी बने. पृथ्वी शॉ ने को अंडर-16 टीम में जगह मिल गई. इसके बाद 2016 में वह अंडर-19 टीम का हिस्सा बने. 2017 में पृथ्वी शॉ ने रणजी ट्रॉफी में डेब्यू किया और शानदार प्रदर्शन किया. 2018 में पृथ्वी शॉ को दिल्ली डेयरडेविल्स ने खरीद लिया. इसके बाद उनकी किस्मत बदल गई. आईपीएल में शानदार प्रदर्शन करने के बाद पृथ्वी शॉ के लिए भारतीय टीम के दरवाजे भी खुल गए.
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