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6 बार बदलाव के बाद तिरंगा बना हमारा राष्ट्रीय ध्वज, जाने कैसे केसरिया ने ली लाल रंग की जगह

भारत देश स्वतंत्रता की 75वीं सालगिरह मना रहा है. हमारा देश 1947 में आज ही के दिन आजाद हुआ था. देश को आजाद कराने में ना जाने कितने स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश भर में जश्न मनाया जाता है. तिरंगे को फहराया जाता है. भारत को आजादी मिलने से 23 दिन पहले संविधान सभा ने देश के आधिकारिक झंडे तिरंगे का अंगीकार किया था. तिरंगा तीन रंग का होता है. इसी वजह से इसे तिरंगा कहा जाता है. सबसे ऊपर केसरिया, बीच में श्वेत और नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी होती है.

भारत का पहला गैर-आधिकारिक राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त 1906 पारसी बागान चौक कोलकाता में फहराया गया था जिसमें लाल, पीले और हरे रंग की पट्टियां बनी थी. इसके बाद 1907 में भारत के दूसरे झंडे को पेरिस में मैडम कामा और उनके कुछ क्रांतिकारियों ने फहराया था. इस झंडे पर ऊपरी पट्टी पर सात तारे जो सप्त ऋषि को दर्शाते हैं, छपे हुए थे.

भारत का तीसरा झंडा 1917 में आया था जिसे डॉक्टर एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने आंदोलन के दौरान फहराया था. लेकिन 1921 में पहली बार काफी गहराई से रिसर्च करने के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सम्मेलन में राष्ट्रीय ध्वज के बारे में सबसे पहले अपनी कल्पना को पेश किया. इसमें लाल और हरे दो रंग थे. इसमें महात्मा गांधी ने सफेद रंग को शामिल करने की बात कही थी.

फिर 1921 में भारत का चौथा राष्ट्रध्वज आया, जो 10 सालों तक अस्तित्व में रहा. 1931 में पांचवा राष्ट्रध्वज आ गया. लाल रंग की जगह केसरिया रंग ने ले ली. इसके बाद 1931 में तिरंगे को संशोधित करके राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने का प्रस्ताव पारित हुआ. 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज के रूप में इसे अंगीकार किया. हालांकि बाद में इसमें मामूली संशोधन हुआ और केंद्र में सम्राट अशोक के धर्म चक्र को शामिल किया गया.

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