अर्जुन को था भगवान कृष्ण का सबसे बड़ा भक्त होने का घमंड, फिर भगवान कृष्ण ने ऐसे तोड़ा उनका गरूर

अहंकार इंसान की बुद्धि को भ्रष्ट कर देता है और उसे विनाश की स्थिति पर ला देता है। अहंकार इंसान को अंधा बना देता है फिर वह चाहे कोई भी हो, अहंकार की वजह से बड़े-बड़े, देवी-देवताओं राजाओं को भी बहुत कुछ भुगतना पड़ा है, ऐसे ही अहंकार से जुड़ी एक प्राचीन कथा अर्जुन और श्री कृष्ण की है। शास्त्रों में यह कथा बहुत लोकप्रिय है। महाभारत काल में अर्जुन को घमंड था कि वह श्री कृष्ण का सबसे बड़ा भक्त है और यह अहंकार उसमें बढ़ता ही चला गया। जब श्रीकृष्ण को इस चीज का पता लगा तो उन्होंने अर्जुन के इस अहंकार को तोड़ा, जाने इस पूरी कथा को।

पौराणिक कथा
महाभारत काल की एक कथा प्रचलित है जिसमें एक ऐसा समय था जब अर्जुन को घमंड हो गया था कि श्री कृष्ण का वह सबसे बड़ा भक्त है, लेकिन जब इस अहंकार के बारे में श्रीकृष्ण को पता चला तो उन्होंने अर्जुन के इस अहंकार को तोड़ने का सोचा। वैसे तो श्री कृष्ण और अर्जुन का रिश्ता बहुत गहरा था दोनों एक दूसरे के बहुत अच्छे मित्र थे लेकिन उसके बावजूद भी अर्जुन को घमंड और अहंकार था की वह श्री कृष्ण का सबसे बड़ा भक्त है। इस भ्रम को तोड़ने के लिए श्री कृष्ण ने 1 दिन अर्जुन को अपने साथ घुमाने ले गए, फिर श्री कृष्ण के साथ अर्जुन भ्रमण कर ही रहे थे तभी अर्जुन की मुलाकात एक गरीब ब्राह्मण से हो गई उस ब्राह्मण का व्यवहार बहुत अजीब सा था, वह सूखी घास से अपना पेट भर रहा था वही कमर में उसके एक तलवार लटका रखी थी।

ब्राह्मण को इस अवतार में देख अर्जुन दंग रह गया। अर्जुन से रहा नहीं गया और अर्जुन ने ब्राह्मण से पूछा “है महा मना आप तो अहिंसा के पुजारी है जी हिंसा के खिलाफ है इसलिए सूखी घास खाकर अपना पेट भर रहे हैं फिर आपने हिंसा का साधन या तलवार अपने साथ क्यों रखा है”

इस पर ब्राह्मण ने अर्जुन को जवाब दिया कि “मैं कुछ लोगों को दंड देना चाहता हूं” अर्जुन ने उत्सुकता के साथ ब्राह्मण से पूछा- “आपके शत्रु कौन है”। इस पर ब्राह्मण ने कहा *मुझे 4 लोगों की तलाश है जिन्होंने मेरे भगवान को तंग किया है मैं उन्हें उनके कर्मों की सजा देना चाहता हूं

अर्जुन की उत्सुकता और बढ़ गई उन्होंने पूछा वे कौन है। इस पर ब्राह्मण ने सबसे पहला नाम नारद का लिया- ब्राह्मण ने कहा सर्वप्रथम मुझे नारद की तलाश है वह मेरे भगवान को आराम ही नहीं करने देता हर समय भजन कीर्तन कर रहे उन्हें जगाए रखता है

ब्राह्मण बोला मैं द्रोपती से बहुत नाराज हूं उन्होंने मेरे भगवान को तब आवाज दी जब आप भोजन करने बैठे थे उन्हें अपना भोजन छोड़ उठना पड़ता कि वह पांडवों को महर्षि दुर्वासा ऋषि के श्राप से बचा सके इसके अलावा द्रौपदी ने प्रभु को अपना झूठा भोजन भी खिलाया था

ब्राह्मण ने आगे कहा प्रहलाद मेरा तीसरा चतुर्भुज दृष्टि की वजह से मेरे प्रभु को गर्म तेल की कड़ाई से उतरना पड़ा, हाथी के पैरों तले कुचला जाना पड़ा और अंत में उन्हें खंबे से प्रकट होने को मजबूर होना पड़ा। ब्राह्मण ने फिर अर्जुन को हैरत में डाल कर उसी का नाम नहीं लिया उन्होंने कहा अर्जुन मेरा चौथा शत्रु है आप उसका दूसरा हर देखकर उसने मेरे प्रभु को अपना सारथी ही बना डाला उसे भगवान की सुविधा का जरा भी ख्याल नहीं रहा इस काम से मेरे प्रभु श्री कृष्ण को कितना कष्ट हुआ होगा। अपने शत्रुओं के नाम और भगवान को हुए कष्ट की बात बताते बताते गरीब ब्राह्मण की आंखों में आंसू बहने लगे उसकी इस निस्वार्थ भक्ति को देख अर्जुन का अहंकार पल भर में टूट गया। उन्होंने श्री कृष्ण से क्षमा मांगी और कहा हे प्रभु मेरी आंखे खुल गई इस दुनिया में आपके अनेक भक्त हैं, मैं तो उनके सामने कुछ भी नहीं हू। अर्जुन की आवाज सुन श्री कृष्ण मुस्कुराने लगे इस प्रकार श्री कृष्ण ने अर्जुन का अहंकार तोड़ा।

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