आज हम आपको बनारस के रहने वाले नारायण जायसवाल के बारे में बता रहे हैं जिन्होंने कड़ा संघर्ष किया और अपने बेटे को आईएएस अधिकारी बनाया. नारायण जायसवाल के परिवार में 6 सदस्य थे. वह उनकी पत्नी, 3 बेटियां और एक बेटा. नारायण के पास 35 रिक्शे थे, जिन्हें वह किराए पर चलाते थे. सब कुछ ठीक चल रहा था. लेकिन उनकी पत्नी की तबीयत खराब रहने लगी, जिस वजह से घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी.
इलाज पर काफी पैसा खर्च हुआ. जांच में पता चला कि उनकी पत्नी को ब्रेन हेमरेज है जिसके ऑपरेशन में काफी खर्च हुआ. इसके लिए उन्हें अपने 20 रिक्शे बेचने पड़े. लेकिन फिर भी उनकी पत्नी जिंदा नहीं बच पाई. उस समय उनके बेटे गोविंद सातवीं कक्षा में पढ़ रहे थे. नारायण जायसवाल अपनी पत्नी की मौत के बाद अकेले हो गए. उनके ऊपर घर की सारी जिम्मेदारी आ गई.
बेटियों की पढ़ाई के लिए और शादी के लिए उन्हें सारे रिक्शे बेचने पड़े. उनके पास केवल एक रिक्शा बचा, जिसे चलाकर वह अपना खर्चा चलाते थे. गोविंद को सब लोग रिश्ते वाले का बेटा कहकर चिढ़ाते थे. लेकिन फिर भी नारायण ने अपने बेटे को पढ़ाना चालू रखा. 12वीं के बाद गोविंद का दाखिला उन्होंने हरिशचंद्र यूनिवर्सिटी में करवा दिया.
2006 में गोविंद ने स्नाततक पूरा किया. इसके बाद वे दिल्ली में आईएएस की तैयारी करने आ गए. गोविंद ने दिल्ली में गोविंद ने ट्यूशन पढ़ाया और खुद भी पढ़ाई की. पहले ही प्रयास में गोविंद ने यूपीएससी परीक्षा में ऑल इंडिया 48वीं रैंक हासिल की. गोविंद को नौकरी मिली तो उनके घर की आर्थिक स्थिति सुधरने लगी. जो लोग कभी नारायण के परिवार का मजाक उड़ाया करते थे, आज वही लोग उनकी इज्जत करते हैं.
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