ये कहानी है आईएएस अधिकारी सुमित कुमार की, जो बिहार के जमुई के सिकंदरा गांव के रहने वाले हैं. सुमित का जन्म बेहद गरीब परिवार में हुआ. उनके पिता सुशाल वणवाल अपने बेटे को बड़ा आदमी बनाना चाहते थे. लेकिन उनके पास इतने साधन नहीं थे. सुमित के गांव में तो स्कूल भी नहीं था. लेकिन उनके मन में पढ़ने की इच्छा थी. सुमित ने अपने सपनों को पूरा करने के लिए 8 साल की उम्र में ही घर छोड़ दिया.
उन्होंने 10वीं और 12वीं की परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त किए और 2009 में उनका चयन आईआईटी कानपुर में हो गया. आईआईटी कानपुर से उन्होंने बीटेक पूरी की और फिर वह यूपीएससी की परीक्षा में तैयारी में जुट गए. सुमित ने 2017 में यूपीएससी की परीक्षा में 493वीं रैंक हासिल की और उनका चयन डिफेंस कैडर में हुआ.
लेकिन वह आईएएस अधिकारी बनना चाहते थे. इसी वजह से उन्होंने दोबारा से 2018 में यूपीएससी परीक्षा दी और उन्हें 53 वीं रैंक मिली. आखिरकार सुमित ने अपने लक्ष्य को पूरा कर ही लिया. हालांकि 8 साल की उम्र में घर छोड़ने के बाद उन्हें अपनी मंजिल तक पहुंचने में काफी मुश्किलें झेलनी पड़ी.
सुमित का कहना है कि जब उन्होंने गांव छोड़ा था तो किसी ने नहीं सोचा था कि वह 1 दिन आईएएस अधिकारी बनकर गांव वापस लौटेंगे. जब गांव में यह खबर पहुंची कि सुमित आईएएस बन गया है तो पूरे गांव में जश्न मनाया गया था. उनके परिवार वाले खुशी से झूम उठे थे. सुमित अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता को देते हैं.
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