किसान ने की अपने बैल की तेरहवीं, गांव वालों को करवाया भोजन, 23 साल तक दिया था साथ

भले ही तकनीक के क्षेत्र में काफी तरक्की हुई हो. लेकिन आज भी देश में कई ऐसी जगह है, जहां लोग बैलों का ही इस्तेमाल करते हैं. किसान के जीवन में हमेशा से ही बैल का महत्व रहा है, जिस वजह से किसान परिवार में बैल को सदस्य के रूप में ही माना जाता है. ऐसा ही एक मामला महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के देवपुर से सामने आया है, जहां संदीप नरोटे के बैल की मृत्यु हो गई.

संदीप नरोटे के पिता 25 साल पहले एक बछड़ा घर लाए थे जिसका नाम उन्होंने सुक्रया रखा. लंबे अरसे तक सुक्रया ने खेती के काम में संदीप के परिवार की मदद की. हालांकि दो साल पहले नरोटे परिवार ने सुक्रया से काम करवाना बंद कर दिया, क्योंकि वह बूढ़ा हो चुका था.

अब जब सुक्रया की मृत्यु हो गई तो संदीप ने उसका अंतिम संस्कार उसी तरह किया, जैसे किसी इंसान का किया जाता है. नरोटे परिवार ने तो सुक्रया की आत्मा की शांति के लिए तेरहवीं का भी आयोजन किया. इस मौके पर सभी गांव वालों को प्रीतिभोज भी कराया गया. हर कोई संदीप नरोटे के इस काम के लिए उनकी तारीफ कर रहा है.

संदीप ने अपने बैल के तेज दिमाग की भी तारीफ की. संदीप ने बताया कि एक बार हम अपने 4 साल के बेटे सोहम के साथ बैलगाड़ी से कहीं जा रहे थे. अचानक से सोहम रास्ते में बैलगाड़ी से गिर गया और हमें इसका पता भी नहीं चला. सुक्रया अचानक से रुक गया, जिस वजह से बैलगाड़ी भी रुक गई. अगर उस समय सुक्रया रुका ना होता तो सोहम पहिए के नीचे आ जाता और हमारे बेटे की जान तक जा सकती थी. इससे सुक्रया के तेज दिमाग का पता चलता है.

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