मंदिर में रात गुजारने वाला गरीब लड़का कैसे बना आईएएस अधिकारी, जानकर पूरी कहानी

सफलता उसी को मिलती है जो मेहनत करता है. अगर इरादा मजबूत हो और कुछ कर दिखाने का जज्बा हो तो कोई भी मुकाम हासिल करना मुश्किल नहीं होता. आज हम आपको उत्तराखंड के शहरी विभाग के निदेशक आईएएस विनोद कुमार सुमन के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्हें पढ़ाई के दौरान काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. वह घर से दूर सैकड़ों किलोमीटर दूर मजदूरी करते थे. फिर शाम को बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते और रात को खुद पढ़ाई करते थे.

विनोद कुमार सुमन का जन्म उत्तर प्रदेश के भदोही के पास जखांऊ गांव में हुआ था. उनका परिवार बेहद ही गरीब था. उनके पिता की आमदनी खेती से होती थी. उनके पिता खेती के अलावा कालीन बुनाई का काम भी करते थे. विनोद ने अपने पिता की मदद करना शुरू कर दिया. विनोद अपने भाई-बहनों में सबसे बड़े थे. ऐसे में उन्होंने अपने पिता का हाथ बटाना शुरू किया. मुश्किल परिस्थितियों में भी उन्होंने अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी.

इंटर पास करने के बाद उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए आर्थिक मुश्किलें होने लगी. इसी वजह से उन्होंने गांव छोड़कर शहर जाने का निर्णय किया. वह गढ़वाल पहुंच गए जहां उन्होंने मंदिर में जाकर पुजारी से शरण मांगी. किसी तरह से उन्होंने वो रात को जारी और अगले दिन ही वह काम ढूंढने निकल पड़े. उन्हें एक सुलभ शौचालय का निर्माण करा रहे ठेकेदार से मजदूरी का काम मिला. उन्हें हर रोज ₹25 मिलते थे. फिर कुछ महीने बाद उन्होंने विश्वविद्यालय में दाखिला देने का निर्णय किया.

उन्होंने श्रीनगर गढ़वाल विवि में बीए प्रथम वर्ष में प्रवेश ले लिया. उनकी गणित अच्छी थी, इसी वजह से वह शाम में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते थे. दिन में मजदूरी करते थे और रात को खुद की पढ़ाई करते थे. जब उनको थोड़े पैसे बचने लगे तो उन्होंने अपने घर भेजना शुरू कर दिया. जब उन्होंने बीए पास कर ली तो इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास में एमए किया.

1995 में उन्होंने लोक प्रशासन में डिप्लोमा किया और प्रशासनिक सेवा परीक्षा की तैयारी में जुट गये. इसी बीच उन्हें महालेखाकार ऑफिस में लेखाकार की जॉब मिल गई. 1997 में उनका पीसीएस में चयन हो गया. 2008 में उन्हें आइएएस कैडर मिल गया. वह अल्मोड़ा, नैनीताल में जिला अधिकारी के पद पर रह चुके हैं.

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