बहुत से लोग समाज में अपना योगदान देने को लेकर बातें बड़ी-बड़ी करते हैं, लेकिन जब उनके ऊपर कोई जिम्मेदारी आती है तो कोई ना कोई बहाना बना कर भागने की कोशिश करते हैं. आज हम आपको 18 साल के उपेंद्र यादव की कहानी बता रहे हैं, जो दिव्यांग है. लेकिन गरीब बच्चों को मुफ्त में शिक्षा दे रहे हैं.
उपेंद्र झारखंड के चतरा जिले से ताल्लुक रखते हैं. बचपन से ही वह एक हाथ और एक पैर से दिव्यांग हैं. वह इंटरमीडिएट की पढ़ाई कर रहे हैं. हालांकि दिव्यांग होने की वजह से उन्हें स्कूल जाने में बहुत मुश्किल होती है. वह छड़ी के सहारे स्कूल जाते हैं. पढ़ाई में उपेंद्र बचपन से ही काफी होशियार रहे हैं.
गरीबी की वजह से उपेंद्र की खुद की पढ़ाई भी सही तरह से नहीं हो पाई. यह बात उन्हें बहुत परेशान करती थी. लॉकडाउन के दौरान तो बच्चों की पढ़ाई में और दिक्कत होने लगी. तभी उन्होंने बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देने की का विचार किया. हालांकि शुरुआत में तो लोग उनका मजाक उड़ाते थे. लेकिन उन्होंने किसी की नहीं सुनी और अपने रिश्तेदारों और पास पड़ोस के बच्चों को पढ़ाने लगे.
धीरे-धीरे उनसे पढ़ने वाले बच्चों की संख्या बढ़ने लगी. फिर उन्होंने गांव के स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया. हालांकि वह जहां बच्चों को पढ़ाते हैं, वह स्कूल बहुत ही जर्जर हालत में है. उन्होंने ₹1000 खर्च कर दीवार पर एक बोर्ड बनवाया. अब उनसे पढ़ने 60 से ज्यादा बच्चे आते हैं. यह बच्चे बेहद गरीब परिवार से हैं, जिनके माता-पिता उन्हें शिक्षा नहीं दिला सकते.
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