बहादुर शाह जफर को उनकी उर्दू शायरी और हिंदुस्तान से मोहब्बत के लिए याद किया जाता है. लेकिन अंग्रेजो के खिलाफ 1857 की क्रांति में उन्होंने एक सम्राट के तौर पर विद्रोहियों और राजाओं का नेतृत्व किया था. हालांकि इसके लिए उन्हें बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी. उन्हें अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया था और मौत दी थी. 132 सालों तक उनकी कब्र के बारे में किसी को पता तक नहीं चला था.
बहादुर शाह जफर के पिता अकबर शाह द्वितीय की मृत्यु 1837 में हो गई थी, जिसके बाद उन्हें गद्दी पर बैठाया गया. ऐसा कहा जाता है कि अकबर शाह अपने बेटे बहादुर शाह जफर को गद्दी पर नहीं देना चाहते थे. उस समय देश के ज्यादातर हिस्सों पर अंग्रेजो का कब्जा हो गया था. मुगलों के पास केवल दिल्ली ही बचा था.
1857 की क्रांति मेरठ से शुरू हुई थी. इस क्रांति को दिशा देने के लिए एक केंद्रीय नेतृत्व की जरूरत थी. तब राजा-महाराजा और विद्रोही सैनिकों ने बहादुर शाह जफर से बात की. बहादुर शाह जफर ने अंग्रेजो के खिलाफ इस लड़ाई में नेतृत्व किया था. 82 साल की उम्र में वह जिंदगी की जंग हार गए. उनका अंतिम समय अंग्रेजों की कैद में गुजरा था.
6 नवंबर 1862 को उन्हें तीसरी बार दिल का दौरा पड़ा और 7 नवंबर की सुबह उनकी मृत्यु हो गई. ऐसा कहा जाता है कि बहादुर शाह जफर को शाम को 4 बजे दफना दिया गया था. उनकी कब्र उस घर के पीछे बनाई गई थी जहां उन्हें कैद करके रखा गया था. लेकिन उनको दफनाने के बाद उस जगह को समतल कर दिया गया, ताकि कोई यह पहचान ना सके कि यहां कब्र बनी हुई है.
132 साल बाद 1991 में जब इस जगह की खुदाई की गई तो इस भूमिगत कब्र का पता चला. इस कब्र से बहादुर शाह जफर की निशानी और अवशेष मिले और जब जांच हुई तब पता चला कि यह बहादुर शाह जफर की कब्र है. बहादुर शाह जफर की पौत्रवधू सुल्ताना बेगम आज झुग्गी झोपड़ी में रहने को मजबूर है. 1980 में उनके पिता राजकुमार राजकुमार मिर्जा बेदर बख्त की मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद से उनकी जिंदगी गरीबी में बीत रही है.
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