जब से देश का बंटवारा हुआ है, हमेशा हिंदू-मुस्लिम धर्म का मुद्दा विवादों में रहता है. राजनीति से जुड़े लोग तो अक्सर इस मुद्दे को उठाते रहते हैं. लेकिन आज हम आपको खान चाचा की कहानी बता रहे हैं जो पिछले 20 सालों से राजस्थान के जैसलमेर में गौशाला में काम कर रहे हैं.
जब 2000 में वह राजस्थान के जैसलमेर आए थे, तब काम की तलाश में थे. लेकिन उन्हें कुछ भी काम नहीं मिला. तभी उन्हें पता चला कि गौशाला में हेल्पर की वैकेंसी खाली है, जिसके लिए वह चले गए. उन्होंने नौकरी के लिए बात की और उन्हें नौकरी मिल गई. वह गौशाला में नौकरी करने वाले पहले मुस्लिम थे. लेकिन इस बात का ना तो उन्होंने किसी और को एहसास होने दिया, ना ही किसी ने उन्हें इस बात का एहसास कराया.
खान चाचा सुबह 6 बजे अपना काम शुरू कर देते हैं. वह गायों को रोटी खिलाते हैं, उनका दूध निकालते हैं और सब मिलकर एक साथ काम करते हैं. खान चाचा ने बताया कि उन्होंने जब नौकरी शुरू की थी तो उन्हें 150 रुपये मिलते थे. लेकिन जैसे-जैसे कारोबार बढ़ता गया तो गायों की संख्या भी बढ़ती गई और उनकी तनख्वाह भी बढ़ती गई. खान चाचा ने गौशाला में नौकरी करते-करते हज यात्रा के लिए पैसे भी जुटाए.
हालांकि 2019 में एक हादसे में उनके बेटे की मौत हो गई जिसके बाद उनके बेटे के दोनों बच्चों की जिम्मेदारी उनके ऊपर ही आ गई. इस मुश्किल घड़ी में गौशाला में काम करने वाले दूसरे कर्मचारियों ने उनकी पूरी मदद की. सभी ने मिलकर ₹30,000 का बंदोबस्त किया और खान चाचा को पैसे दिए. यह सब देखकर उनकी आंखों में आंसू आ गए थे.
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