इंसान चाहे तो कुछ भी हासिल कर सकता है. एक औरत के लिए तो नामुमकिन कुछ भी नहीं है. बहुत से लोग शारीरिक रूप से अक्षम लोगों पर तरस खाते हैं और सोचते हैं कि वह कुछ नहीं कर सकते. लेकिन बाहरी रूप से अक्षम होने से कोई फर्क नहीं पड़ता, अगर मन में कुछ करने की इच्छा हो तो.
यह कहानी है अंकिता शाह की जिन्होंने इकोनॉमिक्स से ग्रेजुएशन की है. लेकिन उनके लिए यह डिग्री किसी काम की नहीं, क्योंकि विकलांग होने की वजह से उन्हें किसी भी कंपनी में नौकरी नहीं दी. अगर उन्हें नौकरी मिलती भी थी तो दूसरों की अपेक्षा उन्हें कम सैलरी दी जाती थी. अंकिता गुजरात के पालीताना की रहने वाली हैं. लेकिन कुछ साल पहले वह अपने परिवार के साथ अहमदाबाद आकर रहने लगी.
पोलियो की वजह से उनका बचपन में दाहिना पैर काट दिया गया था. अंकिता का परिवार अहमदाबाद आया तो काम की तलाश में था. लेकिन पिता की सेहत खराब होने की वजह से उन्होंने काम छोड़ दिया और अब पूरी जिम्मेदारी अंकिता के कंधों पर आ गई. अंकिता के परिवार में 7 लोग हैं, जिनका सारा खर्चा वह उठाती हैं. 2019 में पता चला कि अंकिता के पिता की आंतों में कैंसर है. उस समय वह कॉल सेंटर में जॉब करती थीं. इस वजह से वह ना तो अपने पिता के साथ अस्पताल जा पाती थीं और ना ही अपने पिता की कुछ खास मदद कर पाती थीं.
फिर उन्होंने नौकरी छोड़ दी और ऑटो रिक्शा चलाना शुरु कर दिया. इस काम में उनके एक दोस्त ने उनकी मदद की. उनके मित्र लालजी बारोट ने उन्हें रिक्शा चलाना सिखाया. साथ ही उन्हें कस्टमाइज ऑटो रिक्शा दिलाने में भी मदद की. अंकिता की हर महीने ₹25000 आमदनी हो जाती है. वह चांदखेड़ा और कालीपुर रेलवे स्टेशन के बीच ही ऑटो चलाती हैं. अब वह अपने पिता का अच्छे से इलाज करवा रही हैं और परिवार की जिम्मेदारी भी बखूबी निभा रही हैं.
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